बचपन में दिवाली आती थी तो हम सब चिटपुटिया उड़ाते थे, डर लगता था लेकिन डर को कम करने के तरीके भी था किसी पत्थर पर छुटपुटिया को रख देते थे फिर दूसरे से ईंट से उसको मार कर भाग जाते थे फिर फूट का आवाज निकलता और हम सब खुश हो जाते। आजकल प्यार – मोहब्बत उस चिटपुटिया की तरह हो गया है। बहुत सुक्ष्म हो गया है ,कम अंतराल का हो गया है। आज कीजिए कल फुस हो गया। अभी बुखार बढ रहा था कि दवा ले लिए तब क्या मालूम तरप कितनी है इसमें। सोशल मीडिया के जमाने में प्यार का नशा जल्दी चढ रहा है और उतर रहा है। शरीर की करीबी बढ़ी है लेकिन दिल बेचारा तनहाई से डरता है।
पहले प्रेम पत्र में अदृश्य शक्ति होती थी उसे पढ़ते लिखते प्रेमी, कब कवि बन जाता था उसे मालूम ही नहीं होता था। कुमार विश्वास ऐसे ही कवि बने हैं और अपने प्रेम पत्र को संग्रह कर लिख दिये “कोई दीवाना कहता है ” प्रेम नगरी में जो हाल रहती है वह इस शेर से बयां होती है।
“होश वालो को खबर क्या बेखुदी क्या चीज है
इश्क कीजिए फिर समझिए जिंदगी क्या चीज है”
और आज जब देखो तब -हाय, हेलो बेबी, हाय जान, कैसी हो । आलू के परांठे बना रही हूँ । तो व्हाट्सएप पर भेज दो, हां भेज दूंगी । खा लेना । और फिर आ भी गया। गरमा गरम आलू के परांठे। आज – कल लंच में प्रेमी मैगी चाऊमीन खा- खा कर मोटे हो रहे हैं और दोस्त कमेंट कर रहे होते हैं भाई मोटे हो रहे , क्या बात है । शायर कहता है कि
कुछ होश नही रहता
कुछ ध्यान नही रहता
इंसान मोहब्बत मे इंसान नहीं रहता ।
और ईधर वीडियो कॉलिंग से सारे बाइस्कोप देखा जा रहा है जहां प्यार कम , वासना ज्यादा है। हाय -बाई से कैसे किसी के विचारो -जज्बातों का पता चलेगा। जो प्रेम रतन बन सकता था उसे कंकर बना औरों को भी मारा जा रहा है।
जानू के प्यार में खोया खोया पढ़ाकू बंदा , कब शेरो शायरी करने लगता है पता ही नहीं चलता। जो दूसरों को शेरो शायरी की किताबें पढ़ते देखता और बोलता पढ़ ले पढ़ ले। वह खुद इस में रंग गया है। कबीर जी कह गए-
प्रेम गली अति सांकरी। फिर कह गए ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय। ऐसे में थोड़ा कन्फ्यूजन हो जाता है। बिहारी जी कह गए-
“कहत नटक मिलत खिलत लजियात
भरे भुवन में करत हैं नैनों से ही बात। “
लेकिन आज के कवि क्या लिखें। आज ना लड़का कहता है ना लड़की मना करती है फिर भी फेवीकोल की तरह चिपक जाते हैं। लेकिन ना खिलते हैं ना लजाते हैं। अब भुवन भी नहीं है चारों तरफ पार्क ही पार्क है और पास में मोबाइल है तो नैन से बात करने की जरूरत भी नहीं है।
– धर्मेन्द्र कुमार निराला