तू जिन्दा है तो जिन्दगी की जीत मे यकीन कर
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर
ये गम के और चार दिन
सितम के और चार दिन
ये दिन भी जायेंगे गुजर,
गुजर गये हजार दिन
कभी तो होगी इस चमन पे भी बहार की नजर
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर
तू जिन्दा है तो जिन्दगी की जीत मे यकीन कर
सुबह और शाम के रंगे हुए गगन को चुमकर
तू सुन जमीन गा रही है
कब से झूम-झूम कर
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर
तू जिन्दा है तो जिन्दगी की जीत मे यकीन कर
हजार भेष धर के आई मौत तेरे द्वार पर
मगर तुझे न छल सकी,
चली गई वो हारकर,
नई सुबह के संग सदा तुझे
मिली नई उमर
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर
तू जिन्दा है तो जिन्दगी की जीत मे यकीन कर
हमारे कारवां को मंजिले का इंतेजार है
ये आँधियों , ये बिजलियों की पीठ पर सवार है
तू आ कदम मिला के चल
चलेंगे एक साथ हम
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर
तू जिन्दा है तो जिन्दगी की जीत मे यकीन कर
जमीं के पेट मे पली अगन
पलें है जलजले
टिके न टिक सकेंगे भूख रोग के स्वराज ये
मुसीबतों के सर कुचल ,
चलेंगें एक साथ हम
अगर कहीं है स्वर्ग तो
उतार ला जमीन पर
तू जिन्दा है तो जिन्दगी की जीत मे यकीन कर
बुरी है आग पेट की,
बुरे हैं दिल के दाग ये
न दब सकेंगे, एक दिन बनेंगे इंकलाब ये
गिरेंगे जुल्म के महल,
बनेंगे फिर नवीन घर
अगर कहीं है स्वर्ग तो
उतार ला जमीन पर
तू जिन्दा है तो जिन्दगी की जीत मे यकीन कर————
————– शंकर शैलेन्द्र
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