
शादी-विवाह का सीजन चल रहा है। मुफ्त मे खाने वाले छोड़े नये नये ड्रेस बनाने में संलग्न है । इस ड्रेस के सहारे शादि मे मुफ्त के पापड़ -तिलौरी उड़ाएगें और उनका सीन 3 इडियट वाला ही होगा। दिल्ली में बहुत शादियां होती है वहां कौन वर पक्ष की ओर से और कौन वधू पक्ष की ओर से ; कौन जानता है। यदि उनके मन में विचार आएगा तब भी उनके पास फुर्सत कहां कि वह किसी आगंतुक से सवाल-जवाब करें।आज के आधुनिकता के ठेलम ठेल में सब नजारे देखने को मिलता है। लेकिन जमीन से जुड़ा और गाँव की संस्कृति से पालकी गायब है ।पालकी की जगह एसी कारों ने ले ली है।बाकी कुछ कदम अगर सफर बचता है तब कोई बंदा आता है और दोनों हाथों में जकड़ कर गंतव्य स्थान पर पटक देता है दूल्हे राजा को।देखने वाली बात होती है उठाने वाला बंदा इतनी तेजी से चलता है कि दूल्हे को पता ही नहीं चलता कि कब वह स्टेज के पास पहुंच गया। उनकी स्पीड राजधानी एक्सप्रेस से भी तेज होती है। अब उसका राज्याभिषेक होने वाला है। वह बन्दा जो कई रात फांके मे गुजारी है, प्रेम के अश्रुधारा मे बहकर तकीया गीला कर दिया,अब उसे पुरा भूखण्ड मिलने वाला है। पालकी को शादी सभ्यता से दूर कर दिया गया है वह जहां है सुबक-सुबक कर रो रहा है। कवि कि कविता थम गई है । कवियों ने पालकी और उसमें बैठी दुल्हन पर कविता बनाए हैं लेकिन अब एसी कार और दुल्हन पर कोई कविता नहीं बनाता। कवि को पालकी में सारा सौंदर्य नजर आता है और उसमें बैठी दुल्हन उनकी मेहबुबा से कम नहीं होती। उसके गुणगान में दो-तीन दिन तक वे अखड़े सो जाते हैं लेकिन आज भी आधुनिक साज-समान और बनावटी फूलों से लदी कारों की खूबसूरती उस पालकी से कम ही है फिर भी इन कारों की इतनी अपमान। मेरे मन में भी विचार आया था कि पालकी पर बैठु। लेकीन मुंगेरी लाल के सपनो कि तरह मै पालकी का सपना देखता रह गया। अभी भी सपने मे कभी-कभी पालकी देख लेता हूँ। हमारे जानने वाले पंडित जी बताएं की यह भविष्य का शुभ संकेत है। वैसे शादी में आवारा लड़कों की बल्ले-बल्ले है।उनकी तो बांछे खीली हुई रहती है ।उनके पास काम की कमी नहीं है। वे कभी हलवाई के असीसटेन्ट बन जाते हैं तो कभी वेटर; नही तो कभी समायना और रंगमहल के कर्ताधर्ता। फिर कुछ काम कर मुफ्त की रोटी तोरते हैं। सबसे अधिक लौंडे कैमरामैन बनना पसंद करते हैं वह तो अपने आप को फराह खान से कम नही समझते। वह तो बाद में पता चलता है कि इसमें कहीं दूल्हा पैंट कोट पहनते अधिक नजर आता है और कैमरामैन मारो में सोते हुए रहा है। उसका कैमरा छतो पर 360 डिग्री का कोण ज्यादा बनाता है। पालकी कि सवारी पुष्पक विमान से कम नही है। अगर कंहारो को भी रोजगार मिले तो उनकी भी रोजी रोटी चले।जब दूल्हा-दुल्हन पालकी में बैठकर अपने घर को हिचकोले लेते चलेंगे तो उन्हें ऐसा लगेगा जैसे वे आकाश में सफ़र कर रहे हैं।उनके पास सुकून होगा। प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को निहारते , नदी नालों को फानते, जंगलों , बाग – बगीचे , खेत -खलिहानो, चरवाहों ,पशु-पक्षीयों के बीच से होले -होले गुजरेंगे तो परम आनंद की अनुभूति होगी और जब डोली गांव से गुजरेगी तब उस समय के वे हीरो होंगे ।हर तरफ उन्हें देखने के लिए लोग छतो और सड़कों किनारे खड़े होंगे। और वे उस समय किसी सेलिब्रिटी से कम नहीं होंगे
–– धर्मेन्द्र कुमार निराला निर्मल