
परदे मे रहने दो ,परदे न उठाओ ,,,,, वाह कितना मधुर संगीत है। दिल बाग बाग हो गया।
वैसे कवी प्रेमिका के मनोभाव को कहना चाहता है कि पर्दा उसकी इज्जत है ।आबरू है ।और वह उसका ख्याल करे। आज का गीत फायर ब्रिगेड मंगवा दे तू जोरों पर है अरमा, ओ बलमा ओ बलमा।अब ऐसे गानों को बीच बाजार में गाने लगे तो क्या पता परम विश्वासी लंगोटिया यार 101 पर कॉल कर दे और बाद में पता चले कि किसी कपड़े की दुकान में आग नहीं लगी थी ।यह तो पूरे बदन में लगी थी। सो उसे बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड भी हाथ खड़ी कर दे। पहले गीत आया, तू मेरी जिंदगी है ,तू मेरी हर खुशी है, तू ही प्यार तू ही चाहत, तू ही आशिकी है।यहां प्रेमी ,प्रेमिका के प्यार मे एकाकार होकर उसी में सब कुछ देखता है ।जैसे भक्त भगवान में।

फिर आया जानम समझा करो ,जानम समझा करो अब गीत आया है कोका कोला तूअअ, कोका कोला तूअअ ।पहले प्रेमी लड़की को अपनी जिंदगी समझता था ।बाद में समझाने लगा, जब समझ में आया तब उसे कोका कोला समझने लगा ।उसे किसी दिन की जाएगा तब उसे खाली बोतल तूअअ कहेगा। वैसे खाली बोतल सटीक है क्योंकि बोतल में सोमरस है तब तक एक रंग है । जब खत्म हो जाए तो जीवन दुश्वार है।प्रेम है तब तक सब कुछ, हर पल हर क्षण खुशगवार है और जिसके बिना जिंदगी अधूरी लगे वह खाली बोतल ही है।सुनने में ये भी आ रहा है आज कल के बंदो को प्रांतों के गीत पसंद नहीं आ रहे हैं ।भोजपुरी के तो और नहीं। कारण की अब ये इंग्लिश गीतों से कम संस्कारी लग रहा है। अब वो अपने पर्सनैलिटी को डेवलप करना चाहते हैं ,संस्कार को नहीं जो अंग्रेजी के बगैर संभव नहीं है। सभी अंग्रेजी सिखाने वाली संस्था तो यही दावा करती है कि अंग्रेजी के बिना पर्सनैलिटी डेवलप नही होगा सो अंग्रेजी साॅन्ग सुनना जरूरी है। वाका-वाका सॉन्ग ओका -बोका के लिरिक्स से मिलता है।जिसमें उन्हें बचपन की नेचुरलिटी फील होती है। पहले प्रेयषी शालीन होती थी, प्रेमी सीधा-साधा;दोनो रूप माधुर्य मे खो जाते और गीत गाते- जादू है नशा है मदहोशियां है तुझको भुला कर मैं जाऊं कहां, देखती है तेरी नजरें इस तरह से खुद को छुपाउ कहाँ।
अब तो जोर जबरदस्ती वाली बात है। वे जबरदस्ती फोटो खिंचवाती हैं- खींच तू फोटो ,खींच तू फोटो। पहले घुंघट में लड़की का शर्माना अच्छा लगता था वह मनोहर दृश्य दिल में बस जाता था अब किसी को घुंघट पसंद नहीं है ।पहले के गीतों में कोयल बोलती थी , तो कबुतर गुटर गू करता था।
मोरनी बागा में नाचती थी । प्रकृति के अनुपम सौंदर्य का वर्णन होता था अब तो चिलम जलइबे ,बीड़ी सुलगइबे वाली बात हो रही है ।पहले के महबूब रास्ते से भटक जाते थे तब गीत गाते हुए चलते -तेरे चेहरे में वो जादू है बिन डोर खिंचा चला आता हूं ,जाता हूं कहीं और और कहीं और चला जाता हूं।फिर अंत में अन्यय प्रेम का जादू ही उन्हें खींच कर लाता था। लेकिन आज के महबूब को पहले से डेस्टिनेशन गूगल मैप में लोड है वह भटकता नहीं है सही समय पर एंट्री करता है और गाना गाकर निकलता है-अगर तुम मिल जाओ जमाना छोड़ देंगे हम ।लेकिन भूल जाता है बुड़बक। जहाँ जाएगा जमाना रहेगा। वह आदिमानव तो है नहीं जो गुफा में रहेगा।वैसे आदिमानव गीत गाते थे नहीं। यह डिजिटल मानव है। आठ बजे जगता है और उसके अलार्म में हनी सिंह का गाना बजता है चार बोतल वोटका।
– धर्मेन्द्र कुमार निराला निर्मल