
अठारह साल का एक लड़का बाजार में पालक बेच रहा था। तभी उसके कानों में एक आवाज बाएं तरफ से आई। एक लड़की ग्राहक से सहिजन खरीदने के लिए प्रार्थना कर रही थी। बहुत विनती करने पर ग्राहक ने सहिजन खरीद लिया लेकिन फिर वापस करने लगा ।वह तुरंत बोला- मेरे पास छुट्टे हैं। ले लो! उस दिन से दोनों एक- दूसरे को जानने लगे फिर बातों का सिलसिला शुरू हुआ । क्या नाम है । सुनिधि ! बहुत सुंदर नाम है! आपका क्या नाम है ! रघु ! बहुत अच्छा नाम है। लेकिन तुमने कहा था ? क्या नाम भी सुंदर होता है ।दोनों हंस पड़े । हां ,लेकिन पता नहीं क्यों मैंने भी कह दिया, अच्छा नाम है ! जिंदगी की मुश्किलों के बावजूद जब दोनों बाजार में मिलते ,तब अपने कठिनाइयों को भूल जाते और वही एक समय था । जब दोनों के चेहरे पर खुशी रहता । लेकिन घर जाते ही दुखों का पहाड़ टूट पड़ता । सुनिधि तीन बहनो में बड़ी थी। उसे एक छोटा भाई भी था। उसकी माँ दो साल पहले प्रश्व पीड़ा से मर गई थी । वह अपने छोटे भाई को बहुत प्रेम करती थी।बाजार से उसकी पसंद के चीज प्रतिदिन जरूर लाती थी ।उसका पिता दिहाड़ी मजदूर था। वह अपने पैसों को शराब पर खर्च कर देता था।कभी -कभी तो छोटे- मोटे गलतियों के लिए अपने बेटियों को बेरहमी से पिटता था। सुनिधि को सुबह से देर रात तक काम करना पड़ता । वह सुबह ही दूसरों के खेतों में काम करने के लिए निकल जाती थी। फिर शाम को जल्दी आ कर बाजार चली जाती थी। आज रघु खुश था। उसे पता नहीं , क्यों अधिक खुशी हो रही थी। उसके माँ ने कहा था,अपने आसपास सब्जी बेचने वालों को भी मिठाई खिला देना। रास्ते में ही वह एक किलो गुलाब जामुन खरीद लिया था । आज बहुत खुश लग रहे हो । हाँ, आज मेरा जन्मदिन है ।फिर उसने मिठाई का डब्बा उसके आगे बढ़ा दिया। लेकिन सुनिधि सोचती रही।


रघु ने अपने हाथ से उठाकर उसे मिठाई दिया लेकिन शर्म से वह कुछ बोल नहीं पाई। उसने सबको मिठाई खिलाया । पहली बार बाजार में जन्मदिन का मिठाई
कोई खिला रहा था ।अब क्या ,उस दिन से हर रोज किसी का जन्मदिन मनता ।उस छोटे से पूंजी से उनका दिल बड़ा था ।वे सभी एक -दूसरे को प्यार बांटने लगे । चाँद बादलों में लुका-छुपी खेल रहा था और रह- रह के चाँदनी चारों तरफ बिखेर रहा था। वह पुआल से बनी चटाई पर लेटे चांद को निहार रही थी । चांद के काले- काले धब्बे ,उसे खंडहर जैसे लगे । उसे लग रहा था , रघु उसी में छिपा है ।और वह उसे बुला रहा है। आधी रात बीत चुका था । वह बार-बार करवट बदल रही थी। वह रघु को उपहार देना चाहती थी लेकीन क्या दे , वह यही निर्णय नही कर पा रही थी। अचानक उसके दिमाग में एक विचार आया और वह खुशी से मुस्कुरा दी । रघु को उसने देखा, वह पालक के अलावा हरी मिर्च भी बेच रहा था । वह अपनी जगह पर जाकर बैठ गई। वह बार-बार रघु को देख रही थी। रघु अपने ग्राहकों में व्यस्त था। रघु का ध्यान उसकी तरफ गया और उसने सक- पका कर अपनी मुंह घुमा लिया । आज वह उससे बातें करना चाहती थी लेकिन समझ नहीं आ रहा था ।क्या बोले ?वह सोच रही थी , पालक का दाम पूछे, नही -नही ! कभी सोचती मिर्च का दाम पुछे- नहीं -नहीं ! यह छोटी – छोटी बातें तो हर रोज पुछा करती है ।तभी एक ग्राहक – सहिजन कैसे केजी है ? तीस रूपये ! फिर सोच में पड़ गई । बाजार खत्म हो रही थी। रघु का सब्जी पहले ही बिक गया था। वह जाने लगा । यह देखकर उसने भी आवाज लगाई । रघु मैं भी चलती हूँ। रास्ते में रघु ने पूछा आज तुम उदास क्यों हो ? नही, मैं उदास कहाँ हूँ । सच बताओ! तुम्हारा सहिजन बिक गया ।वह कहना चाहती थी ,हाँ। लेकिन उसे डर था ,कहीं वह टोकरी ना देख ले । वह बोली – नही । रघु अपने जेब से बीस रूपये निकाल कर देने लगा । लो अपने छोटे भाई के लिए मिठाई खरीद लेना ।नही -नही रहने दो । वह तुम्हे जितना प्यारा है , मेरे लिए भी है । इस बार वह मना नहीं कर सकी। उसके नयन सजल हो गये लेकिन छुपाते हुए, उसने टोकरी से गिफ्ट निकाला और उसे दे दिया । हँस के बोली – जन्मदिन मुबारक हो । फिर दोनो हँसने लगे । बेटा आज जल्दी आ गए ।हाँ माँ, टोकरी रखते हुए उसने कहा। माँ पास आकर टोकरी से बोरे को अलग किया । यह क्या है ? माँ , सुनिधि ने दिया है । कल मेरा जन्मदिन था न । इसलिए आज उसने गिफ्ट दिया है। सुनिधि कौन है ? माँ, पास के गाँव की लड़की है ।मेरे साथ ही सब्जी बेचती है , बहुत गरीब है , उसकी माँ नही है , वह एक ही सुर में बोला जा रहा था कि माँ ने कहा, बस रहने दे । एक माँ , एक माँ नहीं होने का दर्द समझ सकती है बेटा ! खोल कर देख , क्या है । माँ इसमें गुलाब का डंठल है । यह कैसा गिफ्ट है , माँ ! पौधा होता तो लगा देता। इसे फेंक दूं माँ। नही ! , नही ! हाँ , यह बहुत शानदार गिफ्ट है बेटा! माँ के कहने पर घर के आंगन में उसने उसे लगा दिया।

रघु और सुनिधि अच्छे दोस्त हो गए थे। सुनिधि कभी-कभी पर्व त्योहारों में उसके घर जाती थी। रघु की माँ उसके लिए खास चीज बनाती । उसके मना करने पर भी उसे जबरदस्ती खिलाती । रघु कई दिन से उदास था क्योंकि सुनिधि बाजार नहीं आ रही थी । एक दिन वह उसके घर चला गया। सुनिधि अपने घर के पास छोटे से गुमटी में किराने की सामान बेच रही थी। रघु को देखकर उसने कहा- मैं कई दिन से तुम्हारे घर आना चाहती थी लेकिन समय नहीं मिल रहा था। रघु अभी तक उसे साधारण कपड़ों में देखा था ।आज वह बहुत सुंदर लग रही थी ।उसे लगता था, बागो के बीच कोई परी बैठी है और चीजों को नहीं बल्कि अपने प्यार और स्नेह बांट रही है ।उसकी आवाज बहुत मीठी लग रही थी। उसके कानों में बाली , खुशी से झूम रहे थे । उसके हाथों की मेहंदी उसके मन को मजबूर कर रहे थे।

आज उसे वह युवती और समझदार लग रही थी। आंटी कैसी हैं । आवाज सुनते ही उसका ध्यान टूटा । अच्छी हैं । तुम बाजार क्यों नहीं आ रही हो। पापा ने कहा है कि मैं बड़ी हो गई हूँ । इसलिए मैं बाजार नहीं जा सकती । अब मेरी छोटी बहन जाएगी । क्या नाम है उसका ? सृष्टि । दोनों चाय पीने लगे । जाते-जाते उसने ,उसके मां के लिए मिठाई दिया और वह बोली -आंटी से कह देना , मैं अच्छी हूँ । रघु का अब मन नहीं लगता । उसकी आँखे उसे बाजार में उसे ढूंढती रहती । वह उसकी बहन से उसके बारे में पूछता रहता । जिससे थोड़ा उसके दिल को चैन मिलता था। सुनिधि भी रघु के बारे में अपने बहन से पूछती रहती थी । उसे लगता था । वह है जो उसके प्यार को समझ सकता है । जो मेरे भाई से प्यार कर सकता है । मुझसे भी उतना ही प्यार करेगा । एक दिन सृष्टी ने कहा कि अगले सोमवार को दीदी का जन्मदिन है । दीदी ने बुलाया है । अब वह पहले से बहुत ही खुश रहने लगा था। रघु का उत्साह जैसे -जैसे समय करीब आ रहा था । वैसे -वैसे बढ़ रहा था। उसे खुशी से नाचने का जी कर रहा था। वह दौड़कर उसके घर चले जाना चाहता था । आज सुनिधि का जन्मदिन था। उसे ऐसा लग रहा था। जैसे हवा में उड़ रहा है और वह अब बादल को छू लेगा। खुशी उसके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी। उसका ललाट चमक रहा था। जब वह उसके घर पहुंचा तो पहले से बहुत से लोग आए थे । सुनिधि ने उसके हाथ के गिफ्ट को देखा। वह समझ गई । प्यार कोई संसारिक चीज नही है । तभी तो उससे इतनी खुशबू आती है । जो ह्दय मे बंद है। कुछ नहीं कहता। कुछ नहीं बोलता । फिर भी महकता है । तो फिर गुलाब की खुशबू चार दीवारों में कैसे कैद रह सकती है। वह जान चुकी थी , जो गुलाब का डन्ठल उसने दिया था । अब वह गुलाब हो चुका है। उसका प्रेम वर्षो तक सर्दी-गर्मी,बारिष और आंधी -तुफान मे , प्रकृति के सभी परिस्थियों मे पलकर और जिंदगी के सभी मुश्किलो को सहकर उसके सामने है । वह सोचने लगी क्या करे। उसके आंखों मे अश्रु आ आगे । लेकीन जल्दी से उसने अश्रु छुपा लिया और कमरे मे चली गई । फिर हिम्मत करके आई । सभी के सामने केक काटी। कमरे में बैठकर दोनों बातें करने लगे तभी रघु ने उसे गिफ्ट दिया । उसने पूछा- इसमें क्या है? वर्षो का सरप्राइज है । समझो तुम्हारा ही गिफ्ट है । मैं कुछ नहीं समझी । तभी रघु की नजर आलमारी में रखी गिफ्ट पर गई। उसने पूछा – यह गुलदस्ता किसने दिया है । बहुत खूबसूरत गुलाब लगे हैं । उसने उठा लिया , बहुत खुशबू आ रही है। वह कैसे कह दे । यह खुशबू बनावटी है । जो क्षण भर में खत्म हो जाएगी । असली खुशबू तो तुम्हारे गुलाब में है। अच्छा बताओ , किसने दिया है । मेरे मंगेतर ने ! क्या ? हाँ , मेरी सगाई हो गई है । यह सुनते ही रघु का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसके चेहरे पर पसीना आने लगा । वह वहाँ से भाग जाना चाहता था । तभी उसने कहा , मैं समझ सकती हूँ , तुम क्या कहना चाहते हो । मैं तुम्हारे प्यार को समझती हूँ। लेकिन तुमने पहले कभी नहीं बताया । वह कुछ नहीं सुनना चाहता था। उसने पूछा , क्या तुम मुझसे प्यार करती हो । बाहर लोग मस्ती कर रहे थे। बहुत शोर हो रहा था। वह कुछ बोल ना सकी । रघु उठकर घर चला आया और कमरा बंद कर रोने लगा । सुबह उगते सूरज की रोशनी में उसने देखा गुलाब के फूल चारों तरफ सुगंध फैला रहे थे । वह पौधों को पानी देने लगा। अगले दिन सुनिधि ने पैकेट खोला, देखा एक बहुत बड़ा गुलाब था और उसने एक ग्रीटिंग कार्ड पर अपने हृदय को रख दिया था।
— धर्मेन्द्र कुमार निराला निर्मल
दिलचस्प कहानी.
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पढ़ने के लिए आभार जी
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5915 फलाॅवर, बधाई
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एक और प्रेम कहानी का दुखद अंत ।
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Thanks
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😁😁😁
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