
जे कृष्णमूर्ति विश्वविख्यात दार्शनिक तथा आध्यात्मिक विषयों के लेखक थे। वे माता-पिता की आठवीं संतान थे, इसलिए उनका नाम कृष्ण के नाम पर रखा गया ।जे कृष्णमूर्ति मानसिक क्रांति, ध्यान और समाज में सकारात्मक परिवर्तन और बुद्धि की प्रकृति जैसे विषयों की गहरी समझ रखते हैं। 1927 में एनी बेसेंट ने उन्हें विश्वगुरु घोषित किया। लेकिन दो वर्ष बाद ही वे थियोसाॅफिकल विचारधारा से दूर हो गए और फिर उन्होंने एक नए दृष्टिकोण का प्रतिपादन किया ।
जे कृष्णमूर्ति
जन्म : 12 मई, 1895
अवसान: 17 फरवरी, 1986
* जीवन के किसी एक हिस्से को जानने के बजाय पूरे जीवन की समझ होना जरूरी है। इसके लिए आपको पढ़ना चाहिए, आकाश की ओर देखना चाहिए, नाचना-गाना चाहिए, कविताएं लिखना, महसूस करना और समझना चाहिए। बस यही सब जीवन है ।

- आंतरिक अनुशासन आवश्यक है, बाह्य अनुशासन मन को मूर्ख बना देते हैं और नकल करने की प्रवृत्ति लाते हैं ।
- एक विचार इतना धूर्त और चालाक होता है कि अपनी सुविधा के लिए वह सब कुछ बदल देता है ।
- असल मायने में सीखना तब शुरू करते हैं, जब हम हमारी प्रतियोगिता की भावना त्याग देते हैं
- हर व्यक्ति के भीतर एक दुनिया समाई होती है ।यदि आप जानते हैं कि कैसे उसे देखना है और सीखना है तो उसका दरवाजा और चाबी आपके हाथ में है। आपके सिवा दुनिया में कोई भी आपको उस द्वार और चाबी को नहीं सौंप सकता।
- हमें आजादी सत्य से मिलती है, न कि आजाद होने की कोशिशों से।
- स्वयं को न जानना ही अज्ञानता है ।ज्ञान हासिल करने की शुरुआत खुद को जानने से होती है ।
- एकांत में रहना सुंदर अनुभूति है। हालांकि एकांत में रहने का अर्थ अकेले होना नहीं है ,बल्कि मस्तिष्क को समाज द्वारा प्रभावित और प्रदूषित होने से बचाए रखना है।
—साभार: दैनिक भास्कर
I can’t read the text of your post, but I so agree that there is a life available free of anger, hatred, and envy! 🙂 ❤
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अच्छी जानकारियाँ! कृष्ण भी अपने माता -पिता की आठवीं संतान थे.
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