
बच्चा पैदा होता है । तब ब्वाॅय रहता है। लेकिन उसका संघर्ष गुड ब्वाॅय बनने में होता है ।वह भौतिकवादी सुखों को छोड़कर आध्यात्मिक सुख में लगा रहता है। वह सीधा साधा पूरे जीवन बना रहता है । उसके दोस्त – साथी गुड ब्वाॅय के नाम का ठप्पा लगा देते हैं ।लेकिन आजकल वह इस चोला को फेंकना चाहता है ।वह जमाने के साथ बदलना चाहता है। अब उसे गुड ब्वाॅय कहने पर चीढ़ होती है ।और इसी परेशानी में एक दिन वह घोषणा कर देता है कि गुड ब्वाॅय उसे नहीं बनना। लाभ के पद से दूसरों को क्या हानि है। क्या पूरा जीवन वह क्रिकेट की खेलेगा । नहीं -नहीं वह पद का सुख लेना चाहता है ।उसके अंदर धैर्य है ।उसके प्रतिद्वंद्वियों को परेशानी है कि यह बंदा कुर्सी पर बैठेगा तो बैठे ही रह जाएगा। फिर हमारा क्या होगा ।तो इसे बीसीसीआई के अदालत में लाया जाए ।लाभ का पद छुड़ाया जाए और कुर्सी को टूटने से बचाया जाए ।और उधर बंदा गुडब्वाॅय बनने से इनकार कर रहा है। लाभ के पद पर बैठने को आमादा है ।उसके दोस्त- साथी उसके पक्ष में खड़े हो गए हैं ।लाभ का पद सभी को परेशान कर रहा है ।जब मीडिया में शोर होने लगा तब सोनिया गांधी को रातों-रात अपने लाभ के पद से इस्तीफा देना पड़ा था। अगर कोई बंदा अपने मल्टीटैलेंट से कई पदों पर आसीन होने के काबिल है ।तो उसका क्या दोष। यह तो उनकी दुर्गति है। जिनके पास सिर्फ एक ही टैलेंट है। ना खाएंगे ना खाने देंगे । अब ये भी भला कोई टेलेंट है ।आप सीधे बोल नहीं सकते। की पच नही सकता है ।इसलिए खा नहीं रहे हैं ।खाना आसान है लेकिन अंदर -अंदर जो पचाने का तिड़कम होता है ।वही बड़ी बात है । डर है कहीं कोई बाहर ना उगल दे। लेकिन कोई पचाने लिए तैयार है तब किसी दूसरे का तेल क्यों जल रहा है ।उसे गुड ब्वाॅय नहीं बनना है ।उसे यह शब्द उसके दोस्त साथियों ने चालाकी से उसके गले में बांध दिए और हर मालपुए से अलग कर दिया। जब खाने की इच्छा हुई दूसरा चिल्लाया तू अच्छा लड़का है ।तुझे यह सब नहीं करना चाहिए। तू बिगड़ जाएगा, तू मत देख , तू मत कर और वह बेचारा उनकी राजनीतिक चाल को समझ नही पाया। जान लुटाने वाले लूटाते रहें और वह समझ नहीं पाया ।उसे तो बाद में पता चला कि उनका एक ही सिद्धांत है ।ना खाएंगे ना खाने देंगे ।उसे कहां मालूम था कि खाने के काबिल नहीं है ।तो खाने को देगा कौन ? जो भी हो वह गुडब्वाॅय नहीं बनना चाहता । वह तोड़ देना चाहता है , इस मिथक को । वह बहते गंगा में हाथ होना चाहता है। लाभ का पद चाहता है। बराबरी चाहता है।
—- धर्मेन्द्र कुमार निराला निर्मल
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