
दिन भर घरे बइठल-बइठल रहनी
मन ना मानल चल गइनी सरसो उखाड़े
शरीर के ताप बढ़ल
घर अइनी बुखारे
हाथ मुह-धोवनी
लगनी छींक मारे
गला मे खड़ास भइल ,
पेट लागल घड़-घड़ मारे
बाड़े एगो रामबेचन पाड़े
पाँचवाँ ले पढ़ल बारे
कहले जोर से ,
करोना ह का रे
माई हमार लगली रोए
भौजी भगली बहरे
बाबुजी मड़ले अजवाइन के धुआं
लोग कहे लागल हुहां-हुहां
बाद मे बुझाइल एमे मरीचा बा डलाइल
बाबा हमार चिलइले
गाँव के बिगड़ल कौन ह रे ।
—-धर्मेन्द्र कुमार निराला निर्मल
भोजपुरी का मेरा ज्ञान पुराने कुछ गानों तक ही सीमित है जैसे : पिपरा के पतवा सरीखे डोरे मनवा,….
पिपरा के पतवा सरीख डोरे तनवा
की देहवा में बढ़त है ताप
गले की खड़ास में आयो रे संदेसवा
की लेलियो कई बार भाप।
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Wah bahut madhur geet
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Wow 😀 amazing
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हार्दिक आभार
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धन्यवाद
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