जिन लोगो को प्याज से प्यार था, वे इससे बेवफाई करने लगे हैं ,उनका कहना है कि प्याज मंहगी हो गई है प्यार से । वैसे प्याज मंहगी हुई है तो अच्छा हुआ घर मे प्यार बढ़ गया है। जो पति प्याज प्याज करते थे – चिकन मे प्याज, आलू मे प्याज, सलाद मे प्याज वो अब चुप हैं । उन्होने मौन धारण कर लिया है और ध्यान मग्न होकर इस तरह देख रहें कि थाली मे प्याज प्रकट हो जाय । रेस्टोरेंट वाले ग्राहक के शिकायत से परेशान हैं। वे सलाद के रूप मे मूली खिलाने लगे हैं और ग्राहक घर मे गैस फैलाने लगे हैं। प्याज से आम आदमी परेशान है,विपक्ष ज्यादा परेशान है। भगवान उसे हर साल इस सीजन मे परेशान होने का, जनता का दर्द समझने का मौका देते हैं, तो वह काहे पीछा रहे।
अब तक प्रसाद के रूप मे भण्डारे मे भीर लगती थी, अब गरीब लोगो को प्याज के लिए भण्डारा हो रहा है।इस तरह के भण्डारे को धर्मराज को ऊँच श्रेणी का दान मान लेना चाहिए। और अपने बही खाते मे दान के अलग रूप मे दर्ज कर लेना चाहिए। अब तक अन्न दान, धन दान और वस्त्र दान को ऊँच श्रेणी मे रखा गया है लेकीन भविष्य मे दान का स्वरूप बदल जाएगा।वारिष नही होगी, अन्न उपजेगा नही फिर दानवीर लोग आलू,प्याज,दाल का दान करेंगे। वैसे पब्लिक समय-समय पर दाल और प्याज के भाव से कोमा मे रहती है। अभी अरहर चूप है, वह भी अपना भाव बढ़ाना चाहेगा। आजकल प्याज को गर्व है अपनी ऊँचाई पर,लेकिन उसके दोस्त-साथी को जलन हो रही है।वे चिल्ला रहे हैं, भाई इतना ऊपर मत चढ़ ,नही तो गिरेगा तो फट जाएगा फिर अगली बार तेरी पैदावार घट जाएगी।सरसो-पालक को कोई पूछ नही रहा है, नया आलू बाजार मे बिना शोर- शराबे के आ गया है।बैगन भी लाल पीला हो रहा है।बिना लहसून का बैगन का चोखा कैसा। सारा शोर प्याज को लेकर हो रहा है लहसून भी कम नही है, बेचारा अपनी चर्चा मिडिया मे नही होने से नाराज है। उसका शिकायत है कि प्याज का ही पब्लिसिटी हो रही है मेरी नही।प्याज लाॅकरो मे रखा जाने लगा है। अब तक लोग मांस-मछली काले पोलीथीन मे लाते थे,अब प्याज भी लाने लगे हैं। ताकी लोग नही जाने की प्याज आप खा रहें है।पहले लुटरे बैंक मे बैठ कर आने-जाने वालो का ट्रानजेक्शन पर नजर रखते थे, अब वे सब्जी बाजार मे इवनिंग वाॅक करने लगे हैं, उनका सेहत भी सुधर रहा है, और सी सी टीवी का खौफ भी नही है। उनका नजर प्याज खरीदने वालो के हाथो पर है ।जगह जगह प्याज की चोरी हो रही है। लोग प्याज घर लाते हुए डर रहें है।——- धर्मेन्द्र कुमार निराला निर्मल