
गंजे लौण्डो कि संसार निराली होती है, सभा हो या फैशन सो,आॅफिस हो या दोस्तो कि महफिल सभी जगह बेचारे को सुनना पड़ता है,हर कोई वैसे फिल्म का रामपाल यादव नही होता कि गंजे कहने पर कोर्ट मे मानहानी का मुकदमा ठोक दे। बड़े बाबुओं कि मानहानी होती है तो इन कुआंरे लौण्डो कि भी होती है।उसका जीवन कटा-छँटा,फटा-वटा बितता है। नहाने पर पानी तो उसके सर पर ठहरता ही नही।वह बन्दा हर रोज महसुस करने की प्रबल कोशिश करता है कि आज नहाया है,लेकीन उसे लगता ही नही वह आज नहाया है । वह किमती हेयर आॅयल लगाता है कि कभी तो पतझड़ के बाद बसंत आएगा। लेकीन घोर दुर्भाग्य कि आधे से अधिक तेल चालीस किलोमीटर प्रती घण्टे के रफ्तार से उसके कंधो पर पँहुच जाता है दोनो ओर,मानो कोई मैराथन दौड़ हो रही हो तेल बुन्दो मे। फिर वह चुपड़-चुपड़ कर माथे पर लगाता है लेकीन बाद मे पता चलता है कि वहाँ बाल हि नही ,फिर हाथ पीछे खींच लेता है
गौर की बात है सभी मर्ज की दवा सरकार के पास है लेकीन गंजेपन के समाधान का कोई राष्ट्रीय योजना सरकार के पास नही, वाह रे व्युरेक्रेसी, माना कि गंजेपन होना करोड़पती होने कि निशानी है पर किसके लिए, जिनके बैठे-बैठे कुर्सी और नोट गिनते-गिनते हाथ टूटे जा रहें है उनके लिए लेकीन बाकी लोगो के लिए यह मजाक ही है। देश मे गंजेपन के वजह से कुंआरो कि संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ रही है। साथ मे अरोसी-परोसी,संगी-साथी,टोले-मोहल्ले,परिवार-रिस्तेदार व्दारा बहु ढूढंते-ढूढते कई बार घर कि महिलाएँ गोधन कुट देती है फिर वो जीला देती है भाभी कि आशा मे। वह बेचारा सारा दिन कुर-कुराता रहता है,उसे खीझ आती है अपने कामदेव पर। कई दोस्त तो उसे एक्सपायरड मान लेते हैं फिर भी जिंदादिल बना रहता है लेकिन ऐसे मनसुख सपने बहुताय देखते है जो सर्वजन हिताय कम ख्याली पुलाव ज्यादा होता है वे द्रवित होकर कहते हैं ,हे!जनमानस तुम भी एक दिन गंजे होगे,फिर पुआल पर ढिमिलिया क्यों मार रहे हो,हमारा भी मान -मनुवल करो और सुनो-
शौक से मत देखो,मगर नजर तो न चुराओ
लहराते बाल नही तो क्या,जिंदादिल है पास तो आओ।
————– धर्मेन्द्र कुमार निराला निर्मल