
दुनिया तेजी से बदल रही है और हर तरफ फैशन का जलवा है, सोचता हूँ जनभागीदारी नही तो कम से कम मेरी भागीदारी हो। कोई हनी सिंह कट बाल कटवा रहा है, कोई गुरू रंधवा कट ।
भले जिन्स लुढ़क कर चौखट पर आ जाय, लेकीन यह फैशन हो गया। मेरे दिमाग मे कई दिनो से खुसुर- खुसुर होने के बाद एन आइडिया कैन चेंज माई लाईफ आया कि जब भारतीय युनिवरसल ड्रेस धोती, कुर्ता,लंगोट और खड़ाऊँ
भूल गएं है तो क्यों न मंहगाई मे खड़ाऊँ पहना जाय ।
मुझे धोती, कुर्ता और लंगोट महँगा लगता है, पता नही कब फट जाय और बदन उघड़ जाय फिर भरे बाजार मे बेईजती होगी सो अलग । प्राचीन ऋषी-मुनी खड़ाऊँ पहनते थे अब यह सनातन चप्पल विलुप्त होने के कगार पर है। मै उत्सुक हूँ ।अपना ट्रेण्ड चलाने के लिए ;अगर कोई स्तार बिग बाॅस मे खड़ाऊँ पहने गृह प्रवेश कर ले तो फिर खड़ाऊँ टीवी पर डिबेट मे रखा जाएगा फिर इस पर राष्ट्रीय स्तर पर बहस
शुरू होगी। लोग सभा-चट्टी मे चप्पल कि जगह खड़ाऊँ चलाने लगेंगे तब डर है कहीं नेता जी का नाक न टूट जाय, फिर खड़ाऊँ पर रोक लगाने के लिए सरकार को नया अध्यादेश लाना पड़ेगा, संसद मे बहस होगी। विपक्ष इसका लोगों की स्वतंत्रता का हनन बोल कर विरोध करेगी। मुझे डर है, कहीं वे भूख हड़ताल पर न चले जाए क्योंकी कौन नही चाहेगा हो रही विकास के भाषण पर फूल वर्षा हो और जनता के भीड़ को सम्भालने के लिए डण्ड वर्षा और एक नेता जी दुसरे नेता जी पर चुटकी लें । फिर खड़ाऊँ को नाक के लिए खतरनाक हथियार के श्रेणी मे डाल दिया जाएगा , उसके बाद कई राष्ट्रीय- अंतराष्ट्रीय बाबा उखड़ जाएंगे और हड़ताल पर चले जाएंगे और बाबा रामदेव का भाषण सुनाई देगी- हें ये भी कोई कानून है ;सनातन चप्पल पर रोक,
यह घोर अन्याय है साधु संतो के साथ ।
—धर्मेन्द्र कुमार निराला निर्मल
good attemp
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