मानव बनो मानव जरा
है भूल करना प्यार भी
है भूल यह मनुहार भी
पर भूल है सबसे बड़ी
करना किसी का आसरा,
मानव बनो, मानव जरा ।
अब अश्रु दिखलाओ नही
अब हाथ फैलाओ नहीं,
हुंकार कर दो एक जिससे,
थर थरा जाए धरा ;
मानव बनो, मानव जरा
उफ , हाय कर देना कहीं
शोभा तुम्हे देता नही
इन आँसुओ से सींचकर
कर दो,
विश्व का कण-कण हरा,
मानव बनो, मानव जरा
अब हाथ मत अपने मलो
जलना, अगर ऐसे जलो
अपने ह्रदय की भस्म से
कर दो धरा को उर्वरा
मानव बनो, मानव जरा
———— शिव मंगल सिंह “सुमन”
मेरी तरह भी
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